आयकर क्या है? जून और जुलाई का महीना आते ही पूरा देश यही सवाल करने लगता है! यह वही समय है जब देश भर में लोगों को रिटर्न भरने की दौड़ में शामिल होना पड़ता है। कुछ लोगों के लिए यह काम बाएँ हाथ का खेल है। वहीं दूसरों के लिए, यह रॉकेट साइंस से कम नहीं है। आमतौर पर ऐसा तब होता है जब हम आयकर के विचार को अच्छी तरह नहीं समझते हैं। अब इन संकेतकों की मदद से यह काम आसान हो जाना चाहिए।
तो, आयकर क्या है?
आयकर वह कर है जिसे आयकर अधिनियम 1961 के अनुसार किसी व्यक्ति या व्यवसाय द्वारा एक वित्तीय वर्ष में कमाई गई वार्षिक आय पर लगाया जाता है। सभी व्यक्तियों को अपनी वार्षिक आय का एक भाग कर के रूप में देना पड़ता है, जिसे आयकर प्रतिशत कहा जाता है। सरकार द्वारा आयकर दरों, आय श्रेणियाँ और विनियमों की देखरेख की जाती है और इनमें समय-समय पर बदलाव किए जा सकते हैं। करदाताओं के लिए यह बेहद ज़रूरी है कि वे पूरी सावधानी बरतते हुए अपनी आय सूचित करें और ठीक समय पर अपने कर दायित्वों को पूरा करें क्योंकि ऐसा करने से चूकने पर दंड और जुर्माना लगाया जा सकता है।
चलिए, अब समझते हैं कि हमें आयकर का भुगतान क्यों करना चाहिए। कर, सरकार के लिए आय का एक बहुत बड़ा स्रोत है जिसका निवेश राष्ट्र-निर्माण के लिए किया जाता है, जैसे कि सार्वजनिक सेवाओं, बुनियादी सुविधाओं और दूसरे ज़रूरी कार्यक्रमों का वित्तपोषण करना। नागरिक होने के नाते, यह हमारा कर्तव्य है कि हम करों का भुगतान करें और धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए अपने राष्ट्र के निर्माण में योगदान दें।
भारत में करों के प्रकार
भारत में करों को दो व्यापक श्रेणियों में बाँटा गया है।
1) प्रत्यक्ष कर- यह वह कर है जिसका भुगतान व्यक्ति और व्यवसाय अपनी आय पर सीधे सरकार को करते हैं। आयकर प्रत्यक्ष कर का सबसे आम उदाहरण है।
2) अप्रत्यक्ष कर - इस स्थिति में, कर बिचौलियों द्वारा इकट्ठा किए जाते हैं, जो कर का बोझ अंतिम उपभोक्ताओं पर डाल देते हैं। जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर), उत्पाद शुल्क और सेवा शुल्क अप्रत्यक्ष कर के आम उदाहरण हैं।
आइए, आयकर को विस्तार से समझते हैं।
यह शब्द स्वतः स्पष्ट है: आयकर वह कर है जिसका भुगतान हम अपनी आय पर करते हैं। इसके बावजूद, इस बात पर ध्यान देना ज़रूरी है कि आयकर को अलग-अलग प्रकार की आय, आय के अलग-अलग स्तरों, वगैरह पर अलग-अलग तरीके से लगाया जाता है। तो चलिए, अलग-अलग प्रकार के आयकर पर एक नज़र डालकर शुरुआत करते हैं।
1) आयकर – व्यक्तियों के लिए: भारत में व्यक्तियों के लिए 5 प्रकार की आय हैं। ये उन पांच प्रकार की आय के बारे में हैं जिन पर कर लगाया जाता है।
अ. वेतन से आय
इसमें वेतन, मज़दूरी, भत्ता और व्यक्ति द्वारा नियोजित होने की वजह से प्राप्त मुआवज़ा शामिल है। इसमें वेतन, बोनस, कमीशन, यदि कोई हो, रियायतों और कर्मचारी को नियोक्ता से मिले दूसरे सभी लाभों को ध्यान में रखा जाता है। यह नियोक्ता की ज़िम्मेदारी है कि वह प्रासंगिक नियमनों के अनुसार वेतन से कर काट ले।
आ. पूंजीगत लाभों से आय
पूंजीगत लाभों का संबंध किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा कमाए गए उन मुनाफ़ों से है, जिन्हें वे पूंजीगत परिसंपत्ति, जैसे कि स्टॉक, रियल एस्टेट, म्यूचुअल फ़ंड या मूल्यवान वस्तुओं, जैसे कि कलाकृतियाँ, गहने, वगैरह को उनके मूल क्रय मूल्य से ज़्यादा कीमत पर बेचकर प्राप्त करते हैं। लाभों की गणना करने के लिए बिक्री से कमाए गए पैसों में से परिसंपत्ति की मूल कीमत को घटा दिया जाता है। पूंजीगत लाभ दो प्रकार के लाभों के बारे में हैं। अल्पकालिक लाभ और दीर्घकालिक लाभ। इसी के अनुसार दोनों पर अलग-अलग कर लगाए जाते हैं। अल्पकालिक लाभों पर लगाए जाने वाले कर की गणना आय श्रेणी पर आधारित है।
इ. संपत्ति से आय
इसका संबंध व्यक्ति की उस संपत्ति से है जिसका उपयोग वह अपने व्यवसाय या पेशे के लिए नहीं करता है। इसमें किराये से आय को शामिल किया जाता है। इसमें कर की गणना संपत्ति के वार्षिक मूल्य पर आधारित होती है। वार्षिक मूल्य को कई कारकों के माध्यम से प्राप्त किया जाता है, जैसे कि नगरपालिका द्वारा मूल्यांकन, सामान्य किराया और दूसरे कारक।
ई. स्वनियोजित व्यक्तियों के लिए लेखांकन लाभ और/या शुल्कों पर उत्पन्न आय
इसका संबंध व्यक्तियों द्वारा कारोबार या व्यवसाय, परामर्श सेवाओं, फ़्रीलांसिंग, दूसरी पेशेवर सेवाओं की वजह से या किसी व्यक्ति या साझेदारी फ़र्म द्वारा कमाई गई आय से है। इस स्थिति में, करयोग्य आय की गणना करने के लिए सकल राजस्व से व्यावसायिक खर्चों और दूसरी स्वीकार्य कटौतियों को घटा दिया जाता है।
उ. दूसरे स्रोतों से आय
इसका संबंध उस आय से है जिसे ऊपर बताए गए शीर्षों में शामिल नहीं किया जा सकता है, लेकिन वह फिर भी करयोग्य है। फ़िक्स्ड डिपॉज़िट, बचत बैंक खाते और किसी को दिए हुए ऋण पर कमाई गई ब्याज आय इसके उदाहरण हैं। लॉटरी में जीत और लाभांश भी इसी श्रेणी में आते हैं।
2) कॉर्पोरेट कर:
कॉर्पोरेट कर का संबंध उस कर से है जो कंपनियों और व्यवसायों द्वारा कमाए गए मुनाफ़े पर लगाया जाता है। इसकी गणना कंपनी की करयोग्य आय के प्रतिशत के रूप में की जाती है, जिसे प्राप्त करने के लिए उत्पन्न राजस्व में से स्वीकार्य कटौतियों और खर्चों को घटाया जाता है। सिर्फ़ भारतीय कंपनियाँ ही कॉर्पोरेट कर का भुगतान नहीं करती हैं। विदेशी कंपनियाँ भी कॉर्पोरेट कर का भुगतान करने के लिए बाध्य हैं, हालाँकि, इसमें थोड़ा अंतर होता है। भारतीय कंपनियाँ को अपनी सार्वभौमिक आय पर कर का भुगतान करना पड़ता है, जबकि विदेशी कंपनियों को सिर्फ़ भारत में कमाई गई आय पर ही कर का भुगतान करना पड़ता है। कर की गणना कंपनी की शुद्ध आय पर आधारित होती है। देशी और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के लिए करों की दरों में अंतर होता है।
भारतीय कर प्रणाली की विशेषताएँ विशिष्ट हैं। भारतीय कर प्रणाली की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
कर-निर्धारण प्रगतिशील है: कर के बोझ का निष्पक्ष वितरण करने के उद्देश्य से ज़्यादा आय वाले व्यक्तियों पर ऊंची दरों पर कर लगाया जाता है।
अप्रत्यक्ष करों का भाग बड़ा है: आय में स्पष्ट विषमताओं की वजह से प्रत्यक्ष कर की सीमा सीमित रखी गई है।
स्रोत पर कर की कटौती (टीडीएस): टीडीएस कुछ संस्थाओं को आदेश देता है कि वे भुगतान करने से पहले स्रोत पर कर की कटौती करें, जिससे सरकार के लिए एक स्थिर राजस्व सुनिश्चित हो जाता है।
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी): जीएसटी ने कई अप्रत्यक्ष करों की जगह लेकर कर संरचना को एकीकृत किया है और व्यवसायों के लिए कर अनुपालन की प्रक्रिया को सरल बनाया है
अब जब हमने आयकर को विस्तार से समझ लिया है, तो चलिए, अब हम आयकर की गणना करने के तरीके को भी समझ लेते हैं। इसके लिए दो रास्ते हैं। पहला है पुरानी व्यवस्था जिसमें सभी आय पर कर लगाया जाता है, लेकिन इसमें कुछ छूट और कटौतियाँ शामिल होने की वजह से करयोग्य आय कम हो सकती है और कर बचत में बढ़ोतरी हो सकती है। दूसरा है नई कर व्यवस्था, जो छः आय स्लैब और निम्न कर दर प्रदान करती है, लेकिन इसमें किसी भी तरह की छूट या कटौती नहीं मिलती है। दरअसल, आप हमारे आयकर कैलकुलेटर का उपयोग करके बस कुछ ही क्लिक से अपने कर की गणना कर सकते हैं।
अब जब हमने आयकर का विचार और आयकर के विभिन्न प्रकारों को समझ लिया है और कर गणना का तरीका जान लिया है, तो समझने के लिए सिर्फ़ एक चीज़ बाकी रह जाती है। और वह है आयकर रिटर्न के प्रकारों को समझना।
आयकर रिटर्न के प्रकार:
करदाता के लिए सात प्रकार के आईटी रिटर्न फ़ॉर्म उपलब्ध हैं। आईटीआर1 से आईटीआर7 तक। आपको अपनी श्रेणी (वेतनभोगी, एचयूएफ़, वगैरह), अपनी उम्र और अपने आय स्तर के आधार पर संबंधित आयकर रिटर्न फ़ॉर्म का चुनाव करना होगा। श्रेणी, आय स्तर, उम्र, वगैरह के अनुसार कर स्लैब अलग-अलग होते हैं। हमारा आपसे अनुरोध है कि आप शुरू में कुछ बार यह काम करने के लिए किसी पेशेवर की मदद ले लें।
अक्सर आयकर को एक वित्तीय दायित्व के रूप में देखा जाता है, लेकिन यह हमारे समाज के एक मूल उद्देश्य को पूरा करता है और सरकारों को बुनियादी सुविधाओं का निर्माण करके, ज़रूरी सेवाएँ उपलब्ध कराकर और पिछड़े वर्गों का उत्थान करके प्रगति को प्रोत्साहित करने में समर्थ बनाता है। भारत में कर प्रणाली विकास परियोजनाओं को वित्तपोषित करने और आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करने में एक बेहद ज़रूरी भूमिका निभाती है। हम अपने कर दायित्वों को पूरा करके राष्ट्र-निर्माण में सक्रिय रूप से शामिल होते हैं और सभी नागरिकों के लिए एक ज़्यादा न्यायोचित और खुशहाल भविष्य को प्रोत्साहित करते हैं।